Monday, 15 October 2012

आखिर क्यूँ ??

जीवन पथ इतना जटिल क्यों है ये रास्ता इतना कठिन क्यों है
सुनहरी सुबह की दलदल सी शाम
कहीं धुप तो कहीं छाँव क्यों है
असत्य का मान और सत्य पर इलज़ाम क्यों है
सीने पे रोज़ लगता वाण और किसी को राजयोग का वरदान क्यों है !!


दुर्जनों का सम्मान, सजन्नों का अपमान क्यों है
मधुशाला जन से सरावोर और मंदिर सुनसान क्यों है
मुख पे गुणगान पर ज़हन इतना वीरान क्यों है
ज़ख्म हर सर पे हर हाथ में पत्थर क्यों है
अपना अंजाम मालूम है सबको
फिर अंजाम से सब हैरान क्यों है !!

कोई किसी से अनजान तो किसी पे इतना मेहरबान
कोई बद-जुबान तो कोई बे-जुबान क्यों है
प्रेम के पथिक का हृदय इतना लहू-लूहान क्यों है
इतने युग बदले फिर भी, यह विद्यमान क्यों है !!


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