Saturday, 20 May 2017

जाना ही था जाते लेकिन कुछ कह जाते

जाना ही था जाते
लेकिन कुछ कह जाते ||

पुष्पों की माला जो लाये
उसका थोड़ा मान बढ़ाते
कर-कमलों में था सही
हृदय में भी उसे सजाते ||

जाना ही था जाते
लेकिन कुछ कह जाते ||

नयनों के मिलन की, मधुस्मृति
पलकों में थोड़ा और बसाते
मन-मंदिर में था प्रेम सही
अंतरमन में भी उसे जगाते |

जाना ही था जाते
लेकिन कुछ कह जाते ||

हर्षित था वो समय, मधुर
कंचन-वर्ण थोड़ा उसे पहनाते
पल-भर की वो बात अधूरी
कुछ तो मुझसे कर जाते |

जाना ही था जाते
लेकिन कुछ कह जाते ||

हाथों का वो मृदु, मिलन
हृदय भी थोड़ा करीब लाते
तन-मन की बात सही
अपनापन कुछ और जताते |

जाना ही था जाते
लेकिन कुछ कह जाते ||

बंधन था वो अमर, अटूट
भाग्य, अनघ थोड़ा कर जाते
मन-मानस में अपनाया सही
प्राणों में भी तो बस जाते  |

जाना ही था जाते
लेकिन कुछ कह जाते ||

जन्म-मृत्यु का चक्र, विहित
आकर उसे पावन कर जाते
प्रणय के पथ पर विरह सही
स्नेह-सुधा कुछ तो बरसाते |

माना जाना ही था जाते
लेकिन कुछ कह कर जाते ||

Saturday, 18 March 2017

आखिर क्या लिखूँ

सत्य लिखूं या मिथ्य लिखूँ या अपने ज़ज़्बात लिखूँ
जीत लिखूं या हार लिखूँ या अपने हालात लिखूँ
उगता सूरज आज लिखूँ या ढलते सूरज की बात लिखूँ
ओश की बूँद की रात लिखूँ या पतझड़ सावन बरसात लिखूँ |

पहली-पहली प्यास लिखूँ या सूखे झरनों की याद लिखूँ
खिलती कलियाँ आज लिखूँ या मुरझाई बल्लरियों की बात लिखूँ
धरती-अंबर की बात लिखूँ या बदला मौसम आज लिखूँ
सावन की बरात लिखूँ या अश्कों की बरसात लिखूँ |

पल-पल तेरा साथ लिखूँ या बीती लम्बी रात लिखूँ
प्यारी सी धुंधली याद लिखूँ या आखों का पहला प्यार लिखूँ
नयनों की चुम्बन साथ लिखूँ या काँटों की चुभन आज लिखूँ
तन-मन अर्पण की बात लिखूँ या टूटे दर्पण पे आज लिखूँ |

कश्मे-वादे साथ लिखूँ या टूटे सपनो की बात लिखूँ
दूरी का एहसास लिखूँ या मज़बूरी की बात लिखूँ
बीती यादें  आज लिखूँ या जो बीत गया वो बात लिखूँ
हाथों में तेरा हाथ लिखूँ या छुटा तेरा साथ लिखूँ |

चिर-चितवन तेरा साफ़ लिखूँ या चितवन के धूल पे आज लिखूँ
हर्षित मन की बात लिखूँ या कल्पित ह्रदय से आज लिखूँ
जलते दीपक की बात लिखूँ या बुझते दीयों को आज लिखूँ
इंद्रधनुष की बात लिखूँ या बिखरे रंगों से आज लिखूँ |

Monday, 6 February 2017

हिज़्र

अतीत की चादर को ओढ़े
वर्तमान साझे खड़ा था
भविष्य की चिंता भी थी
मगर वो अपनी ज़िद में अड़ा था
तोड़ दूंगा स्वप्न सारे
छोड़ दूंगा बेसहारे
कह रहा हूँ मान ले अब
वो आनन् नहीं तुम्हारा ।

टूटते हैं कितने तारे
छूटते हैं कितने प्यारे
हिज़्र के उस वक़्त में
रक़ीब अपना ही नशीब था
भावनाओं के भंवर में
डगमगा रही थी कश्ती
डूबने की चाह में
आँख मूंदे ही पड़ा था ।

सूर्य अपनी ही तपिश में
किरण रक्त जैसा सजाये
लाल थी धरती और अंबर
रुधिर जैसा लाल ह्रदय था
लाल पहनी लाल ओढ़ी
लाल सजाये माँग उसने
रक्त की धारा से पूछो
वो तो अश्रु में सना था ।

वेदनाओं के अगन से
ह्रदय घायल हो रहा था
नीर के रहते हुए भी
प्यास और बढ़ ही रहा था
वक़्त घटता जा रहा था
धुंध बढ़ता जा रहा था
सांस अटकी थी परंतु
न जी रहा न मर रहा था ।

वक़्त ने करवट ली ऐसी
हुए  मदमस्त वो ज़हन से
वादे टूटे रश्मे छुटी
साथ छूटा आस टुटा
दुःख बड़ा या दर्द बड़ा था
अशमंजस बहुत बड़ा था
रास्ता कठिन था लेकिन
हौशला अभी ज़रा बचा था |

याद आऊं या न आऊं
वज़ूद पीछे ही खड़ा है
गर भूलना आसान होता
तो भुला देता वो मंज़र
विश्वास की डोर थामे
आगे तुम जो बढ़े हो
तोड़कर उस डोर को
गाँठ बंधने अब चले हो |