Wednesday, 3 October 2012

कदमों के निशान


कदम बढ़ते गए वक़्त गुजरते गए,
मैंने सोचा मेरे क़दमों के निशान कभी नहीं मिट पाएंगे।
मैं दूर तलक बढ़ता गया दुनिया की भीड़ में खोता गया,
पीछे मुड कर नहीं देखा मेरे कदम कहाँ तक चले गए।
किसी ने मुझसे पूछा तुम जिस राह चले उस राह पर मैं भी चलना चाहता हूँ,
मैंने कहा मेरे क़दमों के निशान पे तुम चल के मेरे पास आ जाओ।
बड़ी उम्मीद थी किसी ने तो कहा की वो मेरे साथ चलना चाहता है,
पर जब उसने कहा मैं कैसे आऊं तुम्हारे क़दमों के निशान मिट चुके है।

शायद उस भीड़ ने निशान को मिटा दिया या मेरे कदम ज़मीन पे नहीं पड़े।

आज मैं सोचता हूँ अपने अतीत को कोसता हूँ और जब पीछे मुड के देखता हूँ,
सच वो मेरे अपने क़दमों के निशान मुझे भी नहीं दिखते।

Thursday, 12 July 2012

मेरे बारे में कोई राय न कायम करना .
एक दिन मेरा वक़्त बदलेगा तुम्हारी राय बदलेगी|
 

मैं लोगो से मुलाकातों का लम्हा याद रखता हूँ,
बाते भूल भी जाऊ पर लहजा याद रखता हूँ |

थोडा हटके चलता हूँ जमाने की रिवायत से कि,

जिनपे मैं बोझ डालु वो कन्धा याद रखता हूँ |

कोई मुझे याद करे न करे वो बात अलग हैं वरना मेरे वजूद को भुला पाना इतना आसान नहीं |

अच्छे ने अच्छा और बुरे ने बुरा जाना मुझे,

जिसकी जैसी सोच थी उसने उतना ही पहचाना मुझे |